– सुबोध कुमार –
नोएडा। गौतमबुद्ध नगर लोकसभा सीट पर सोशल इंजीनियरिंग कमाल दिखाएगा, इस बात की चर्चा तेज है। हालांकि यह क्षेत्र भारतीय जनता पार्टी का गढ़ माना जाता है, लेकिन सपा-बसपा और रालोद के गठबंधन से दिलचस्प संघर्ष की स्थित बन गई है। कांग्रेस प्रत्याशी की एंट्री तिकोने संघर्ष की ओर इशारा कर रही है, लेकिन भाजपा और गठबंधन प्रत्याशी ही आपस में एक दूसरे से अपनी लड़ाई मान रहे हैं। जबकि कांग्रेस अपना प्रतिद्वंद्वी भाजपा को मान रही है।
वर्ष-2014 में हुए लोकसभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी के प्रत्याशी डॉ. महेश शर्मा ने जीत का परचम लहराया था। उन्हें 5 लाख 99 हजार 702 वोट मिले थे। दूसरे नंबर पर सपा के नरेंद्र भाटी थे। उन्हें 3 लाख 19 हजार 490 वोट मिले थे। 01 लाख 98 हजार 237 वोट लेकर बसपा के सतीश कुमार तीसरे नंबर थे। चुनाव के सिर्फ दो दिन पहले कांग्रेस के रमेश चंद तोमर ने भाजपा का दामन थामकर तहलका मचा दिया था। ऐसे हालात में कांग्रेस को 12 हजार 727 वोट मिले थे। तब इसे पूरे देश की अनूठी चुनावी घटना बताई जा रही थी। सियासी हलकों में इस बात की चर्चा थी कि अगर रमेश चंद तोमर ने कांग्रेस को दगा नहीं दिया होता तो भाजपा के उम्मीदवार डॉ. महेश शर्मा की जीत का अंतर बेहद कम हो सकता था।
अब पांच वर्ष बाद एक बार फिर 17वीं लोकसभा चुनाव का बिगुल बज चुका है। इस बार पिछले चुनाव के मुकाबले काफी कुछ बदला हुआ है। भाजपा ने हालांकि डॉ. महेश शर्मा पर एक बार फिर विश्वास जताया है, लेकिन सपा-बसपा और रालोद का गठबंधन नए समीकरण की ओर इशारा कर रहा है। माना जा रहा है कि भाजपा और कांग्रेस के परंपरागत वोटरों में सवर्ण (क्षत्रिय, ब्राह्मण, कायस्थ) मतदाता शामिल हैं। हालांकि वैश्य बिरादरी का भी झुकाव इन्हीं दोनों पार्टियों की ओर माना जाता है।
गौतमबुद्ध नगर लोकसभा क्षेत्र में इन तीनों ही जातियों के वोट ठाकुर-3.5 लाख, ब्राह्मण-3.75 लाख और वैश्य-1.50 (लगभग 09 लाख) होता है। जबकि सपा-बसपा और रालोद के परंपरागत वोटों की बात करें तो उसमें दलित (वाल्मिीकि-जाटव) 3.25 लाख, यादव 1.0 लाख, मुस्लिम 2.5 लाख और जाट-70 हजार बिरादरी शामिल हैं। इसके अलावा धोबी, नाई और पासी जाति के मतदाताओं का झुकाव भी मायावती, अखिलेश और चौधरी अजित सिंह की ओर माना जाता है। इनकी संख्या इस क्षेत्र में लगभग 3 लाख होने का अनुमान है। कयास लगाए जा रहे हैं कि गठबंधन प्रत्याशी के गुर्जर बिरादरी से होने के नाते गुर्जर मतदाता भी गठबंधन की ओर जा सकते हैं। ऐसी स्थिति में इन जातियों के वोट लगभग 12 लाख बैठते हैं।
गौतमबुद्ध नगर सीट से कांग्रेस ने शिक्षित युवा डॉ. अरविंद कुमार सिंह को अपना उम्मीदवार बनाया है। क्षत्रिय बिरादरी का होने के कारण कांग्रेस प्रत्याशी अपनी बिरादरी के वोटरों पर दावा ठोक रहे हैं। इसके अलावा ब्राह्मण और मुस्लिम वाटों पर भी उनकी निगाह लगी हुई है। खुद युवा होने के कारण उन्हें भरोसा है कि युवा उनके साथ जुड़कर चुनाव की तस्वीर बदल देगा। लेकिन, संगठन की कमजोरी की वजह से वह आम वोटरों के बीच अपनी पहुंच नहीं बना पा रहे हैं। फिर कांग्रेस युवा चेहरे के भरोसे 35 साल से खाई अपनी सियासी जमीन तलाश रही है। राजनीति के जानकारी बताते हैं कि गौतमबुद्ध नगर लोकसभा सीट पर कांग्रेस का लगभग डेढ़ लाख मतदाताओं का वोट बैंक है। इसके बाद वह जितना मजबूत होगा, भाजपा उतनी कमजोर होगी। सियासी हलकों में इस बात की भी चर्चा है कि कांग्रेस प्रत्याशी जितनी मजबूती से चुनाव लड़ेगा, गठबंधन को उतना ही अधिक लाभ होगा। लेकिन, यहां यह नहीं भूलना चाहिए कि इस चुनावी कुरुक्षेत्र में गठबंधन प्रत्याशी को नुकसान पहुंचाने वाला एक गुर्जर उम्मीदवार ताल ठोक रहा है। गुर्जर बिरादरी का यह प्रत्याशी जितेंद्र सिंह कसाना शिवपाल यादव की पार्टी प्रगतिशील समाजवादी पार्टी लोहिया से ताल ठोक रहे हैं। चर्चा है कि वह सिर्फ वोटकटवा की ही भूमिका निभाएंगे।
चुनाव में सभी दलों के अपने वादे और दावे होते हैं। सभी अपनी जीत के प्रति आश्वस्त होते हैं। सभी के पास अपनी सोशल इंजीनियरिंग का जोड़-घटाना होता है। शहरों और गांवों में बंटे इलाकों के मतदाताओं की अपनी समस्याएं और प्राथमिकताएं होती हैं। चुनाव में विकास को मुद्दा तो बनाया जाता है, लेकिन जातिवादी आंकड़े विकास के मुद्दे पर भारी पड़ जाते हैं। चुनावी इतिहास भी इस बात की गवाही देते हैं। लेकिन, किसी भी चुनाव में मतदाता किसी ‘ऊंट’ की भांति ही होते हैं। जैसे ऊंट किस करवट बैठेगा, किसी को पता नहीं होता। उसी तरह मतदाता किसे अपना समर्थन देंगे, यह भी भविष्य के गर्भ में ही होता है। मतदाताओं ने किसके पक्ष में गए, इसका खुलासा तो परिणाम आने के बाद भी होता है।