चंबल मेनिफेस्टो के जरिये बदहाली दूर करने की कवायद 

फूलन देवी की मां मुलादेवी के हाथों जारी हुआ चंबल मैनिफेस्टो 2019

दिनेश शाक्य

इटावा। खूंखार डाकुओं के आंतक के कारण उपेक्षित चंबल को बेहतर करने की कवायद के मद्देनजर राजनेताओं को आईना दिखाने की एक कोशिश मैनिफेस्टो के जरिये की गई। फूलन देवी की मां मुलादेवी के हाथों चंबल मैनिफेस्टो 2019 बीहड़ से संसद तक का सफर तय करने वाली फूलन देवी के जालौन स्थित गांव शेखुपुरा गुढ़ा से जारी किया गया।

2019 चुनाव के चलते सभी राजनैतिक दलों ने अपना मेनिफेस्टो जारी कर रही हैं। वादों-दावों का दौर में ऐसा पहली बार हुआ है, जब सदियों से कई गौरवपूर्ण और स्याह इतिहास को खुद में दफन किए चंबल का मैनिफेस्टो लाया गया है। अपने आप में तीन राज्यों के कई इलाकों को समेटे मेनिफेस्टो में फूलन देवी के यूपी के जालौन स्थित शेखुपुरा गांव से लेकर मध्य प्रदेश, राजस्थान के चंबल के विकास के लिए कई सुझाव और समस्याओं को बताया गया है। शिक्षा, रोजगार, सड़क, पानी जैसी कई समस्याएं हैं, जिसके जड़ से समाने से चंबल के लोगों का जीवन स्तर आज भी किसी तीसरी दुनिया के देश के बदहाल इलाके की तरह है। चंबल में फिल्म सिटी बनाने की भी मांग की गई है।

इस धरा ने द्रोपदी की बगावत को देखा है। तब पहली बार यहां चंबल के किनारे चमड़ा सुखाने की परंपरा बंद कराया गया। शायद यह पर्यावरण बचाने का आदि संदेश था। मध्यकाल में भी दिल्ली की सत्ता कभी इस इलाके को काबू में नहीं रख सकीं। दिल्ली के बगावती तब चंबल के बीहड़ों में शरण लेते। फिर तो यहां के बीहड़ बगावत का एक सिलसिला ही बन गए। आजादी आंदोलन में अंग्रेजों को सबसे बड़ी चुनौती चंबल के इलाकों में इसी रवायत के चलते मिली। इमरजेंसी भी चंबल की बगावत के आगे पानी मांग गई थी। व्यक्तिगत उत्पीड़न और अन्याय के खिलाफ भी बगावत की अभिव्यक्ति चंबल में जारी रही। बंदूक उठाकर बीहड़ में कूदना सरकार, राजनीति और पुलिस के संरक्षण में पोसे जाने वाले जालिमों को मटियामेट करने के संकल्प को परिभाषित करने वाला मुहावरा बन गया।

नर्सरी आफ सोल्जर्स के नाम से विख्यात चंबल वह इलाका है, जहां के लोग देश के लिए बलिदान हो जाने के जुनून के चलते सबसे ज्यादा संख्या में सेना और अन्य बलों में शामिल होते हैं। इस इलाके में शांति के दिनों में भी किसी न किसी गांव में सरहद पर तैनात किसी जवान को तिरंगे में लपेटकर लाया जाता है।

चंबल पुरातात्विक सभ्यता की भी खान है। संसद का चेहरा यहां की इसी महान सभ्यता का मुखौटा है। बीहड़ के कोने-कोने में सैकड़ों साल के इतिहास की स्मृतियों को सीने में दबाये भग्नावशेष बिखरे पड़े हैं। 900 किमी लंबी चंबल के साथ दौड़ते बीहड़ों और जंगलों में क्रांतिकारियों, ठगों, बागियों-डाकुओं के न जाने कितने किस्से दफन हैं। चंबल की यह रहस्मयी घाटी हिन्दी सिनेमा को हमेशा लुभाती रही है। लिहाजा इस जमीन को फिल्मलैण्ड कहा जाता है। आजादी के बाद इस पृष्ठभूमि पर बनी तमाम फिल्में सुपरहिट रहीं। जिस रूप में बचपन से चंबल देखा, उसमें सदियां बीतने के बाद भी बहुत कुछ नहीं बदला है। यहां तक कि कई इलाके ऐसे हैं जहां आज भी पानी तक नदियों से पीया जाता है। ठीक से रोटी, कपड़ा और मकान तो छोडिए यहां पीने का साफ पानी तक मुहैया नहीं है। 

फूलन देवी की मां मुला देवी :
चंबल का जितना दोहन हो गया, लेकिन अब नहीं हो। चंबल बड़े बदलाव की राह देख रहा है। सूरत बदलने को वह लगातार प्रयासरत हैं। कई सामाजिक संगठनों, बड़े राजनेताओं से इसके लिए लम्बी बातचीत हुई है।

शाह आलम, चंबल मैनिफेस्टो के निर्माता :
ये हैं सुझाव।
चंबल आयोग बनाया जाए। ऐतिहासिक धरोहरों को संरक्षित कर पर्यटन मानचित्र से जोड़ा जाए, चंबल विकास बोर्ड का गठन किया जाए, लोकनायक जेपी के सुझावों को लागू किया जाए, पुल, सड़क और विद्युत से चंबल के बीहड़ में बसे गांवों को जोड़ा जाए, रोजगार के अवसर पैदा कर पलायन को रोका जाएं, चंबल फिल्म सिटी का स्थापना की जाए, दिल्ली सहित तमाम महानगरों में चंबल भवन बनाया जाए, भारतीय सेना में चंबल रेजीमेंट की स्थापना की जाए, पचनद बांध योजना को क्रियान्वति किया जाए, चंबल औषधीय रिसर्च सेन्टर खोला जाय, चम्बल में सैनिक स्कूल खोला जाए और औरैया में क्रांति संग्रहालय की स्थापना।

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