भारत

आम मरीज से लेकर दवा कंपनी को फायदा पहुंचा रही एम्स की क्रायो इलेक्ट्रॉन लैब 

-सर्वाइकल कैंसर और किडनी ट्रांसप्लांट के मरीजों के लिए विकसित की दो अलग -अलग टेस्ट किट

नई दिल्ली, 22 अप्रैल (टॉप स्टोरी न्यूज़ नेटवर्क): देश के लोगों को गंभीर रोगों की जांच सुविधाएं और जीवन रक्षक दवाएं कम से कम दाम में उपलब्ध कराने के लिए एम्स दिल्ली ने एक अत्याधुनिक ईएम लैब तैयार की है। इससे जहां देश की फार्मा कंपनियों को अपने उत्पादों की वैज्ञानिक जांच के बाबत विदेश पर निर्भर नहीं रहना पड़ेगा। वहीं, दवा उत्पादों की विश्वस्तरीय जांच सुविधा देश में ही मिल सकेगी। यही नहीं, इस लैब के माध्यम से नई दवाओं के लंबे- लंबे ट्रायल की अवधि में तीन साल तक की कमी भी लाई जा सकेगी।

एम्स दिल्ली के इलेक्ट्रॉन माइक्रोस्कोपिक फैसिलिटी विभाग के अतिरिक्त प्रोफेसर डॉ सुभाष चंद्र यादव ने सोमवार को बताया कि करीब 50 करोड़ रुपये की लागत से कन्वर्जेंस ब्लॉक में अत्याधुनिक लैब स्थापित की जा रही है। इसमें 8 क्रायो इलेक्ट्रॉन मशीनें लग चुकी हैं और 4 आने वाली हैं। इन मशीनों से बीके वायरस की सटीक जांच की जा सकती है। इस वायरस की जांच के लिए एक नई तकनीक ‘बीकेवी नैनो लैंप’ विकसित की गई है जिससे 5 हजार रुपये वाला टेस्ट सिर्फ 100 रुपये में हो सकेगा। इस टेस्ट से समय की भी बचत होगी यानी 7 दिन में मिलने वाली रिपोर्ट सिर्फ 3 घंटे में मिल सकेगी। दरअसल, यह वायरस अक्सर किडनी ट्रांसप्लांट कराने वाले मरीज की किडनी को डैमेज कर देता है जिससे उसकी नई किडनी भी फेल हो जाती है।

इसके अलावा सर्वाइकल कैंसर की जांच के लिए नई तकनीक ‘एमएनक्यू डीसीआईएनएफए’ भी विकसित की गई है। इस तकनीक से करीब 6 हजार रुपये में होने वाला टेस्ट सिर्फ 100 रुपये में कराया जा सकेगा। वहीं, तीन से पांच दिन में मिलने वाली सर्वाइकल कैंसर की जांच रिपोर्ट महज आधे घंटे में मिल सकेगी। डॉ सुभाष यादव के मुताबिक ईएम लैब में वायरस पर आधारित वैक्सीन को मान्यता प्रदान करने के लिए जरुरी वायरस क्वांटिफिकेशंस- ट्रांसमिशन इलेक्ट्रॉन माइक्रोस्कोप (क्यूवी-टीईएम) जांच की सुविधा भी उपलब्ध है। इस जांच के लिए भारतीय दवा निर्माता कंपनियों को यूरोपीय देश जर्मनी को एक लाख 30 हजार रुपये का भुगतान करना पड़ता है लेकिन एम्स दिल्ली में यह टेस्ट महज 13 हजार रुपये में कराया जा सकेगा। इस किफायती टेस्ट का अंतिम लाभ दवा कंपनी के माध्यम से जनता को ही मिलेगा।

उन्होंने बताया कि इस लैब में कैंसर रोगी के टिश्यू का सैंपल लेकर उसकी गहन और तुलनात्मक जांच के जरिये जाना जा सकता है कि वह शरीर के अन्य हिस्सों को प्रभावित कर रहा है या नहीं। इस लैब से पर्सनलाइज मेडिसिन भी डेवलप की जा सकती है। साथ ही नई दवाओं के औसत ट्रायल अवधि को 10 साल से घटाकर सात साल तक किया जा सकता है। डॉ यादव ने कहा, फिलहाल एम्स अपनी लैब से 40 से 50 लाख रुपये सालाना राजस्व अर्जित कर रहा है जिसके 5 करोड़ रुपये सालाना के स्तर पर पहुंचने की उम्मीद है। लैब संबंधी प्रोजेक्ट के लिए केंद्र सरकार के आईसीएमआर, डीबीटी और एनएसईआरबी इंडिया ने फंड उपलब्ध कराया है।

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