भारत

गर्भवती महिलाओं को एनीमिया मुक्त बनाने में मदद करेगा स्वदेशी टीका

-टीके की सिर्फ एक खुराक से एनीमिया ग्रस्त महिलाओं को मिलेगी राहत

संतोष सूर्यवंशी

नई दिल्ली, 9 अप्रैल (टॉप स्टोरी न्यूज नेटवर्क): गर्भवती महिलाओं में एनीमिया यानी खून की कमी संबंधी विकार भारत के लिए बड़ी समस्या बना हुआ है जिसके चलते प्रतिवर्ष लगभग 40% महिलाएं प्रसव के दौरान दम तोड़ देती हैं। वहीं, वैश्विक स्तर पर यह समस्या लगभग 22% है। इस विकराल समस्या से निजात पाने के लिए एम्स दिल्ली ने फेरिक कार्बोक्सि माल्टोज (एफएमसी) टीके का विकास किया है जिसकी सिर्फ एक खुराक से ही महिलाओं में एनीमिया की समस्या खत्म हो जाएगी। जल्द ही यह टीका देशभर के प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों में उपलब्ध होगा।

यह जानकारी ‘प्रजनन आयु की महिलाओं के एनीमिया में पैरेंट्रल आयरन खुराक का राष्ट्रीय स्तर पर तकनीकी परामर्श’ संबंधी परिचर्चा के दौरान सामने आई। एम्स के महिला एवं प्रसूति रोग विभाग की अध्यक्ष डॉ नीना मल्होत्रा ने कहा कि साल 2047 तक देश को एनीमिया मुक्त बनाने का लक्ष्य रखा गया है, जिसे स्वदेशी रूप से विकसित एफएमसी टीके के जरिये हासिल करने में आसानी होगी। डॉ मल्होत्रा ने कहा कि एम्स पिछले 2 साल से गर्भवती महिलाओं को टोटल डोज इन्फ्यूजन आईवी आयरन की खुराक (एफएमसी) दे रहा है जिसे बिल्कुल सुरक्षित और प्रभावी पाया गया है। इस टीके की मदद से महिलाओं में आयरन की कमी पूरी हो जाती है।

वहीं, डॉ जेबी शर्मा ने कहा कि राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण -5 के अनुसार भारत में आधे से अधिक महिलाएं एनीमिया से ग्रस्त हैं जिनमें 52% गर्भवती महिलाएं और 59% किशोर लड़कियां शामिल हैं। यह एक चिंताजनक स्थिति है। कम्युनिटी मेडिसिन के प्रो कपिल यादव ने कहा, गर्भावस्था में गंभीर एनीमिया जीवन के लिए खतरा होता है। महिला के खून में हीमोग्लोबिन की मात्रा 7 ग्राम प्रति डेसीलीटर से कम होने पर जच्चा और बच्चा दोनों की जान पर खतरा मंडराने लगता है। सामान्य तौर पर यह मात्रा 11 ग्राम होनी चाहिए।

डॉ यादव ने कहा, अब तक महिलाओं को टीके की 5 से 7 खुराक दी जाती हैं लेकिन आईवी (इंट्रावेन्स) आयरन इंजेक्शन की एक खुराक ही काफी रहेगी। फिलहाल, यह टीका विदेश से करीब 3000 रुपये में आयात करना पड़ता है जिसे जल्द ही भारत में 300 से 500 रुपये में उपलब्ध कराया जाएगा। इस अवसर पर एम्स के निदेशक प्रो एम श्रीनिवास, जॉर्ज टाउन विश्वविद्यालय यूएसए के डॉ. माइकल ऑरबैक, डॉ. तेजस आचार्य, डॉ कशिश मेहरा के अलावा स्वास्थ्य नीति निर्माताओं समेत 100 विशेषज्ञ मौजूद रहे।

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