आज का अध्यात्म ज्ञान: जगत की कामना का भाव ही सद्भावना को नष्ट कर देता है: आचार्य निराला महाराज
व्यास – आचार्य निराला महाराज
फर्रुखाबाद- उ.प्र.: जगत की कामना का भाव ही सद्भावना को नष्ट कर देता है। असत् को सत् मान लेना और सत् का चिन्तन भुला देना, नाशवान पदार्थो में आशक्त हो और उन्हें प्राप्त करने के प्रयास में असफल होने पर क्रोध का उत्पन्न होना जो प्राणी की पात्रता को क्षति पहुंचाता है। जिससे जीव अपवित्र हो जाता है या यूँ कहा जा सकता है कि क्रोध से बढ़कर कुछ अपवित्र नहीं है एक मात्र क्रोध का आविर्भाव होने से धर्म के पथ से पथिक भटक जाता है। भटका हुआ राही अपने गन्तव्य को नही प्राप्त कर पाता क्रोध शत्रु को पराजित करने वाला व्यक्ति ही सद्-चरित्रवान एवं भगवान का प्रिय भाजन बनता है।

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